सकारात्मक सोच की मुहिम और टीका उत्सव से लेकर सेवा सप्ताह की पटकथा

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रायपुर : कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कोरोना संकट में भाजपा और संघ परिवार की सकारात्मक सोच की मुहिम और टीका उत्सव से लेकर सेवा सप्ताह की पटकथा पर निशाना साधा है। शुक्ला ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के भीषण प्रकोप के लगभग एक पखवाड़े बाद भाजपा और संघ के बौद्धिक रणनीतिकारों ने इंटरनेट मीडिया और समाचार माध्यमों के पटल पर एक मुहिम की शुरुआत की। इसका नाम दिया सकारात्मक सोच।

निश्चित तौर पर सकारात्मकता अच्छी चीज है, जीवन में बेहतर करने के लिए सकारात्मक होना और परिस्थितियों के बारे में आशावादी दृष्टिकोण जरूरी है। देश में महामारी के वर्तमान संकट के समय सकारात्मक सोच को जिस दृष्टिकोण में प्रस्तुत किया जा रहा, उस नीयत पर सवाल खड़ा हो रहा है। जब किसी के स्वजन की कोरोना से दवा और इलाज न मिलने के कारण मौत हुई हो। जब किसी को अपने मां-बाप, भाई-बहन पुत्र को लेकर अस्पताल दर अस्पताल बेड के लिए भटकने के बाद भी बेड न मिला हो और आंखों के सामने बिना इलाज के तड़पते स्वजन की मौत का मंजर हो, तब उससे आशावादी दृष्टिकोण की बात करना न सिर्फ बेमानी है, अमानवीय भी है।

सकारात्मक सोच की मुहिम चलाने वाले यही कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को टीका लगाया जाएगा। इस घोषणा के पहले किसी भी प्रकार का होमवर्क नहीं किया गया, लेकिन पीएम ने टीका उत्सव मनाने की घोषणा भी कर दी। प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार भाजपाई देश भर मे नाच-गाकर टीका उत्सव मनाने लगे, लेकिन यह उत्सव भी औपचारिकता मात्र बन कर रह गया, क्योंकि वैक्सीन के अभाव में देश के अधिकांश राज्यो में टीकाकरण नहीं शुरू हो पाया।

जहां शुरू भी हो गया, वह भी दो चार दिनों में बंद हो गया। आजादी के बाद शायद ही किसी सरकार को कोर्ट में इतनी नकारात्मक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा होगा। भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को गांव-गांव में मोदी सरकार की उपलब्धियां बताने को भेज रही, तो यह भाजपा नेतृव की 2004 वाली फील गुड और इंडिया शाइनिंग वाले मुगालते की पुनरावृत्ति है।