नई दिल्ली। संसद के बजट सत्र में नागरिकता संशोधन कानून के साथ ही एनआरसी के विरोध का झंडा उठा रहे विपक्ष के लिए एनआरसी पर कांग्रेस का रुख बड़ी चुनौती बनेगा। असम में एनआरसी का सूत्रपात करने का श्रेय ले चुकी कांग्रेस का दोहरा रुख संसद में सरकार की घेरेबंदी की विपक्षी कोशिशों को कमजोर कर सकता है। जाहिर तौर कांग्रेस का एनआरसी पर पुराना रुख बजट सत्र में सत्ता पक्ष के जवाबी सियासी वार का हथियार बनेगा।
एनआरसी पर भाजपा की आलोचना कर रहे विपक्ष दलों को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय हुए असम समझौते से लेकर यूपीए सरकार के समय शुरू हुई प्रक्रिया से जुड़े तथ्यों का आइना दिखाने की सत्ता पक्ष की तैयारी है। इसमें दस्तावेजी सबूतों के अलावा कांग्रेस के एनआरसी पर आधिकारिक बयान भी शामिल हैं। इसमें 2018 के अगस्त में असम में एनआरसी की आयी ड्राफ्ट लिस्ट के बाद कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला का बयान काफी अहम है। तब पार्टी का आधिकारिक दृष्टिकोण रखते हुए उन्होंने ने एनआरसी को असम समझौते का ‘बेबी’ करार दिया था।
एनआरसी प्रक्रिया असम समझौते का बेबी: कांग्रेस
सुरजेवाला ने इस प्रेस कांफ्रेंस में कहा था ‘स्व. राजीव गांधी द्वारा ऐतिहासिक तरीके से असम के अंदर शांति और विकास की गति लाने के लिए वहां आसू और दूसरे संगठनों के साथ असम समझौते पर दस्तख्त किए गए। एनआरसी प्रक्रिया असम समझौते का ‘बेबी’ है और आपको हैरानी होगी कि इस एनआरसी की पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए भाजपा की पिछली वाजपेयी सरकार द्वारा केवल पांच लाख रुपया दिया गया। एनआरसी प्रक्रिया को 2005 के बाद कांग्रेस की सरकारों ने चालू किया। लगभग 490 करोड रुपये की राशि दी गई और 25000 से ज्यादा गणनाकार लगाए गए।
ताकि हर विदेशी जो गैरकानूनी तरीके से असम के अंदर है उसकी पहचान की जा सके। जो पहली ड्राफ्ट लिस्ट आयी है ये उस एनआरसी प्रक्रिया का पहला चरण है। 2005 से 2013 तक 82728 बांग्लादेशियों को कांग्रेस की यूपीए की सरकार ने वापस भेजा (डिपोर्ट)। जबकि उन्होंने (मोदी सरकार ने) पिछले चार साल में मात्र 1822 विदेशी घुसपैठियों को ही डिपोर्ट किया।’ जाहिर तौर पर कांग्रेस का यह बयान एनआरसी पर विपक्षी विरोध के तेवर को कमजोर करेगा।