भोपाल. मध्य प्रदेश में सरकार बचाने और गिराने के सियासी ड्रामे में चिट्ठी वॉर से भी राजनीति गरमाई हुई है। मंगलवार शाम को स्पीकर एनपी प्रजापति ने राज्यपाल लालजी को पत्र लिखकर विधायकों की सुरक्षा पर चिंता जताई तो राज्यपाल ने भी कुछ ही घंटे में पत्र का जवाब दिया। उन्होंने पत्र के बिंदुओं पर सवालों तो उठाए ही, विधायकों की सुरक्षा को लेकर स्पीकर पर तंज कसा। कहा- सुरक्षा का काम कार्यपालिका का है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये पत्र त्रुटिवश मेरे पास भेज दिया गया। इससे पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच भी फ्लोर टेस्ट को लेकर चिट्ठी पत्र में सवाल-जवाब किए गए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री एक-दूसरे को दो-दो बार पत्र लिख चुके हैं।
सदस्यों की जानकारी के बारे में आपने क्या प्रयास किए- स्पीकर से राज्यपाल
प्रिय श्री प्रजापति जी,
‘‘सदस्यों की अनुपस्थिति के कारण उनकी सुरक्षा के संबंध में आपकी चिंता की प्रशंसा करता हूं। 8-10 दिनों से आप जिस पीड़ा से गुजर रहे होंगे, उसका मुझे भी अंदाजा हो रहा है। लेकिन, इन दिनों सदस्यों की जानकारी प्राप्त करने के बाबत आपके द्वारा किए गए प्रयासों का पत्र में उल्लेख नहीं है, फिर भी मैं जानता हूं कि निश्चित रूप से आपने समुचित प्रयास किए होंगे। जहां तक सदस्यों के इस्तीफे स्वीकार किए जाने का प्रश्न है, तो मैं आपके द्वारा 22 में से 6 सदस्यों के इस्तीफे स्वीकार करने की प्रशंसा करता हूं। यह निष्पक्ष, साहसपूर्ण और शीघ्र किया गया निराकरण है। राज्यपाल ने कहा- आपके द्वारा मुझसे कुछ प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा की गई है। उक्त अपेक्षा निश्चित ही किसी नियमावली के अंतर्गत होगी और आपने उसका अवलोकन किया होगा। कृपया, संबंधित नियमावली मुझे प्रेषित करने का कष्ट करें। कथित लापता विधायकों से आपको और मुझे लगातार पत्र प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने अपने किसी भी पत्र में, जहां पर भी वे वर्तमान में हैं, अपनी ओर से कोई समस्या व्यक्त नहीं की। उनके पत्र और वीडियो, बयान मीडिया में हैं। अब वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। आपने पत्र में विधायकों की सुरक्षा की मांग की है। प्रदेश के सभी नागरिकों की सुरक्षा का दायित्व कार्यपालिका का है और आप उससे ही सुरक्षा चाहते होंगे, किंतु त्रुटिवश यह पत्र मुझे प्रेषित हुआ प्रतीत होता है। मुझे हर्ष होगा कि मैं किसी भी रूप में आपकी वर्तमान चिंता और कष्ट का समाधान कर सकूं।’’
भवदीय
लालजी टंडन
विधायकों के लिए चिंतित हूं, डर दूर करें: राज्यपाल से स्पीकर
विधानसभा अध्यक्ष प्रजापति ने राज्यपाल टंडन को पत्र लिखा, ‘‘मुझे दूसरे लोगों के माध्यम से 16 विधायकों के इस्तीफे मिले हैं। विधायकों को सदन के नियमों के अनुसार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा गया था, लेकिन उनमें से किसी ने भी उसका पालन नहीं किया। इस्तीफों पर विचार चल रहा है। उनमें से कुछ विधायकों के परिजन ने उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। मैं उन विधायकों के लिए चिंतित हूं और आपसे अनुरोध करता हूं कि हमारे डर को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएं।’’
स्पीकर ने अपने पत्र में सवाल भी किए थे
यदि यह इस्तीफे स्वेच्छा से प्रस्तुत किए गए होते तो क्या संबंधित विधायक के परिवार के सदस्य, निकट संबंधी या उनके कार्यकर्ता साथी नहीं होते?
क्या यह स्पष्टत: संविधान के मौलिक अधिकारों में प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है?
क्या प्रदेश के अन्य राजनेताओं की तरह ही इनके द्वारा स्वछंद वातावरण में प्रेस के सम्मुख निर्भीक होकर स्वेच्छा से बयान दिए जा रहे हैं?
राज्यपाल के कमलनाथ को लिखे दो पत्र चर्चा में
राज्यपाल की पहली चिट्ठी 14 मार्च को लिखी गई, जिसमें सरकार से फ्लोर टेस्ट के लिए कहा गया। 16 मार्च को उन्होंने दूसरी चिट्ठी तब लिखी, जब विधानसभा में फ्लोर टेस्ट नहीं कराया गया। इस पत्र में राज्यपाल ने सरकार पर नाराजगी जताते हुए कहा- ‘‘अगर 17 अगर को फ्लोर नहीं कराया तो माना जाएगा कि सरकार अल्पमत में है।’’ राज्यपाल की नाराजगी सार्वजनिक होने पर मुख्यमंत्री ने मुलाकात की और पत्र जारी किया।
ऐसे चला चिट्ठी वॉर
16 मार्च सुबह 10 बजे: कमलनाथ ने राज्यपाल से कहा- स्पीकर के काम में दखल देना राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं
कमलनाथ ने कहा- ‘‘40 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने हमेशा मर्यादाओं का पालन किया, आपके 16 मार्च के पत्र से दुखी हूं, जिसमें आपने मुझ पर मर्यादाओं का पालन नहीं करने का आरोप लगाया। मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी। फिर भी यदि आपको ऐसा लगा है तो मैं खेद व्यक्त करता हूं। विधायकों के दबाव से मुक्त होने पर ही बहुमत परीक्षण होगा। आपने 14 मार्च को मुझे लिखे पत्र में यह मान लिया है कि मेरी सरकार ने बहुमत खो दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आपने भाजपा से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ऐसा माना। विधानसभा की कार्यप्रणाली से संबंधित बातों पर मुझसे अपेक्षा की गई है, जबकि यह सब विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। उनके कार्य में हस्तक्षेप करना राज्यपाल के क्षेत्राधिकार में नहीं आता। विधानसभा राज्यपाल के नीचे काम नहीं करती। कुल मिलाकर राज्यपाल विधानसभा के लोकपाल की तरह काम नहीं कर सकते।’’
16 मार्च शाम 5 बजे: राज्यपाल ने कमलनाथ से कहा- अफसोस! आपने फ्लोर टेस्ट में आनाकानी की
राज्यपाल ने चिट्ठी में लिखा- ‘‘14 मार्च को लिखे गए मेरे पत्र के जवाब में आपका पत्र मिला। खेद है आपके पत्र का भाव/भाषा संसदीय मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है। मैंने 16 मार्च को विश्वास मत प्राप्त करने के लिए लिखा था। सोमवार को सत्र प्रारंभ हुआ, लेकिन विश्वास मत की कार्यवाही प्रारंभ नहीं हुई। पत्र में सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय का हवाला दिया गया, वह वर्तमान परिस्थितियों पर लागू नहीं होता। यह खेद की बात है कि आपने मेरे द्वारा आपको दी गई समयावधि में बहुमत सिद्ध करने की बजाय पत्र लिखकर विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराने में अपनी असमर्थता व्यक्त की/आनाकानी की, जिसका कोई भी औचित्य और आधार नहीं है। आपने फ्लोर टेस्ट नहीं कराने के जो कारण दिए हैं, वे आधारहीन और अर्थहीन हैं। आप संवैधानिक और लोकतंत्रीय मान्यताओं का सम्मान करते हुए 17 मार्च तक विधानसभा में फ्लाेर टेस्ट करवाएं और बहुमत सिद्ध करें। अन्यथा यह माना जाएगा कि वास्तव में आपको विधानसभा में बहुमत प्राप्त नहीं है।’’
17 मार्च सुबह 11 बजे: कमलनाथ ने राज्यपाल से कहा- बंदी विधायकों को आजाद होने दीजिए
कमलनाथ ने 13 घंटे में लिखी दूसरी चिट्ठी में कहा- ‘‘आपने यह मान लिया है कि मेरी सरकार बहुमत खो चुकी है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आपने भाजपा से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ऐसा माना है। भाजपा ने कांग्रेस के 16 विधायकों को बंधक बना रखा है। भाजपा के नेता इन विधायकों पर दवाब डालकर उनसे बयान दिलवा रहे हैं। प्रदेश के बंदी विधायकों को स्वतंत्र होने दीजिए। 5-7 दिन खुले वतावारण में बिना दबाव के घर में रहने दीजिए ताकि वो स्वतंत्र मन से अपना निर्णय ले सकें। आपने कहा है कि 17 मार्च तक फ्लोर टेस्ट नहीं कराने पर यह माना जाएगा कि मुझे वास्तव में बहुमत प्राप्त नहीं है, यह पूरी तरह से आधारहीन और असंवैधानिक है।’’