मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आज ‘मन की बात’ का सौवां एपिसोड है। मुझे आप सबकी हजारों चिट्ठियाँ मिली हैं, लाखों सन्देश मिले हैं और मैंने कोशिश की है कि ज्यादा से ज्यादा चिट्ठियों को पढ़ पाऊँ, देख पाऊँ, संदेशों को जरा समझने की कोशिश करूँ। आपके पत्र पढ़ते हुए कई बार मैं भावुक हुआ, भावनाओं से भर गया, भावनाओं में बह गया और खुद को फिर सम्भाल भी लिया। आपने मुझे ‘मन की बात’ के सौवें एपिसोड पर बधाई दी है लेकिन मैं सच्चे दिल से कहता हूँ, दरअसल बधाई के पात्र तो आप सभी ‘मन की बात’ के श्रोता हैं, हमारे देशवासी हैं। ‘मन की बात’, कोटि-कोटि भारतीयों के ‘मन की बात’ है, उनकी भावनाओं का प्रकटीकरण है।
साथियो, 3 अक्टूबर, 2014, विजय दशमी का वो पर्व था और हम सबने मिलकर विजय दशमी के दिन ‘मन की बात’ की यात्रा शुरू की थी। विजय दशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। ‘मन की बात’ भी देशवासियों की अच्छाइयों का, सकारात्मकता का, एक अनोखा पर्व बन गया है। एक ऐसा पर्व जो हर महीने आता है, जिसका इंतजार हम सभी को होता है। हम इसमें positivity को celebrate करते हैं। हम इसमें people’s participation को भी celebrate करते हैं। कई बार यकीन नहीं होता कि ‘मन की बात’ को इतने महीने और इतने साल गुजर गए। हर एपिसोड अपने आप में खास रहा। हर बार, नए उदाहरणों की नवीनता, हर बार देशवासियों की नई सफलताओं का विस्तार। ‘मन की बात’ में पूरे देश के कोने-कोने से लोग जुड़े, हर आयु-वर्ग के लोग जुड़े। बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ की बात हो, स्वच्छ भारत आन्दोलन हो, खादी के प्रति प्रेम हो या प्रकृति की बात, आजादी का अमृत महोत्सव हो या फिर अमृत सरोवर की बात, ‘मन की बात’ जिस विषय से जुड़ा, वो, जन-आंदोलन बन गया, और आप लोगों ने बना दिया। जब मैंने, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ साझा ‘मन की बात’ की थी, तो इसकी चर्चा पूरे विश्व में हुई थी।
साथियो, ‘मन की बात’ मेरे लिए तो दूसरों के गुणों की पूजा करने की तरह ही रहा है। मेरे एक मार्गदर्शक थे – श्री लक्ष्मणराव जी ईनामदार। हम उनको वकील साहब कहा करते थे। वो हमेशा कहते थे कि हमें दूसरों के गुणों की पूजा करनी चाहिए। सामने कोई भी हो, आपके साथ का हो, आपका विरोधी हो, हमें उसके अच्छे गुणों को जानने का, उनसे सीखने का, प्रयास करना चाहिए। उनकी इस बात ने मुझे हमेशा प्रेरणा दी है। ‘मन की बात’ दूसरों के गुणों से सीखने का बहुत बड़ा माध्यम बन गयी है।
मेरे प्यारे देशवासियो, इस कार्यक्रम ने मुझे कभी भी आपसे दूर नहीं होने दिया। मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो वहां सामान्य जन से मिलना-जुलना स्वाभाविक रूप से हो ही जाता था। मुख्यमंत्री का कामकाज और कार्यकाल ऐसा ही होता है, मिलने जुलने के अवसर बहुत मिलते ही रहते हैं। लेकिन 2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहाँ का जीवन तो बहुत ही अलग है। काम का स्वरूप अलग, दायित्व अलग, स्थितियाँ-परिस्तिथियों के बंधन, सुरक्षा का तामझाम, समय की सीमा। शुरुआती दिनों में, कुछ अलग महसूस करता था, खाली-खाली सा महसूस करता था। पचासों साल पहले मैंने अपना घर इसलिए नहीं छोड़ा था कि एक दिन अपने ही देश के लोगों से संपर्क ही मुश्किल हो जायेगा। जो देशवासी मेरा सब कुछ है, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था। ‘मन की बात’ ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया, सामान्य मानवी से जुड़ने का रास्ता दिया। पदभार और प्रोटोकॉल, व्यवस्था तक ही सीमित रहा और जनभाव, कोटि-कोटि जनों के साथ, मेरे भाव, विश्व का अटूट अंग बन गया। हर महीने में देश के लोगों के हजारों संदेशों को पढता हूँ, हर महीने में देशवासियों के एक से एक अद्भुत स्वरूप के दर्शन करता हूँ। मैं देशवासियों के तप-त्याग की पराकाष्ठा को देखता हूँ, महसूस करता हूँ। मुझे लगता ही नहीं है, कि मैं, आपसे थोडा भी दूर हूँ। मेरे लिए ‘मन की बात’ ये एक कार्यक्रम नहीं है, मेरे लिए एक आस्था, पूजा, व्रत है। जैसे लोग, ईश्वर की पूजा करने जाते हैं, तो, प्रसाद की थाल लाते हैं। मेरे लिए ‘मन की बात’ ईश्वर रूपी जनता जनार्दन के चरणों में प्रसाद की थाल की तरह है। ‘मन की बात’ मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा बन गया है।
‘मन की बात’ स्व से समिष्टि की यात्रा है।
‘मन की बात’ अहम् से वयम् की यात्रा है।
यह तो मैं नहीं तू ही इसकी संस्कार साधना है।
आप कल्पना करिए, मेरा कोई देशवासी 40-40 साल से निर्जन पहाड़ी और बंजर जमीन पर पेड़ लगा रहा है, कितने ही लोग 30-30 साल से जल-संरक्षण के लिए बावड़ियां और तालाब बना रहे हैं, उसकी साफ़-सफाई कर रहे हैं। कोई 25-30 साल से निर्धन बच्चों को पढ़ा रहा है, कोई गरीबों की इलाज में मदद कर रहा है। कितनी ही बार ‘मन की बात’ में इनका जिक्र करते हुए मैं भावुक हो गया हूँ। आकाशवाणी के साथियों को कितनी ही बार इसे फिर से रिकॉर्ड करना पड़ा है। आज, पिछला कितना ही कुछ, आँखों के सामने आए जा रहा है। देशवासियों के इन प्रयासों ने मुझे लगातार खुद को खपाने की प्रेरणा दी है।
साथियो, ‘मन की बात’ में जिन लोगों का हम ज़िक्र करते हैं वे सब हमारे Heroes हैं जिन्होंने इस कार्यक्रम को जीवंत बनाया है। आज जब हम 100वें एपिसोड के पड़ाव पर पहुंचे हैं, तो मेरी ये भी इच्छा है कि हम एक बार फिर इन सारे Heroes के पास जाकर उनकी यात्रा के बारे में जानें। आज हम कुछ साथियों से बात भी करने की कोशिश करेंगे। मेरे साथ जुड़ रहे हैं हरियाणा के भाई सुनील जगलान जी। सुनील जगलान जी का मेरे मन पर इतना प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि हरियाणा में Gender Ratio पर काफी चर्चा होती थी और मैंने भी ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’ का अभियान हरियाणा से ही शुरू किया था। और इसी बीच जब सुनील जी के ‘Selfie With Daughter’ Campaign पर मेरी नजर पडी, तो मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने भी उनसे सीखा और इसे ‘मन की बात’ में शामिल किया। देखते ही देखते ‘Selfie With Daughter’ एक Global Campaign में बदल गया। और इसमें मुद्दा Selfie नहीं थी, technology नहीं थी, इसमें Daughter को, बेटी को प्रमुखता दी गयी थी। जीवन में बेटी का स्थान कितना बड़ा होता है, इस अभियान से यह भी प्रकट हुआ। ऐसे ही अनेकों प्रयासों का परिणाम है कि आज हरियाणा में Gender Ratio में सुधार आया है। आईये आज सुनील जी से ही कुछ गप मार लेते हैं।