सरकार ने की Saudi Aramco के साथ प्रस्तावित डील रोकने की मांग, तो Reliance ने अदालत में सुनाई खरी-खोटी

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नई दिल्ली ; मुकेश अंबानी नियंत्रित रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने दिल्ली हाई कोर्ट में सरकार की उस याचिका के बचाव में तगड़ी दलील दी है, जिसके जरिये सऊदी अरैमको के साथ 15 अरब डॉलर की प्रस्तावित डील रोकने की मांग की गई है। कंपनी का कहना है कि यह अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग है, क्योंकि कंपनी पर बकाये की देनदारी को लेकर कोई भी अंतिम मध्यस्थता फैसला नहीं आया है।

इस वर्ष अगस्त में आरआइएल ने कहा था कि सऊदी अरैमको ने 15 अरब डॉलर में कंपनी के पेट्रोलियम एवं केमिकल बिजनेस में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने संबंधी गैर-बाध्यकारी करार किया है। सरकार ने हाई कोर्ट के समक्ष दलील दी थी एक एक मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने रिलायंस और उसके साङोदारों से 3.5 अरब डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया है।

रिलायंस ने सरकार की याचिका के खिलाफ पेश हलफनामे में कहा है सरकार का यह दावा पूरी तरह गलत है। किसी भी मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने कंपनी और उसके साङोदारों के खिलाफ कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। कंपनी ने हलफनामे में कहा है, ‘याचिका कानूनी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल है। इसमें कहा गया है कि कुछ रकम बकाया है और एक अंतिम फैसले के तहत उसका भुगतान किया जाना है।

इस मामले में बकाया भुगतान के लिए जिस आधार पर रकम की गणना की गई है, उसका जिक्र न तो मध्यस्थ के फैसले में है और न ही याचिका में उसके बारे में कुछ बताया गया है।’ रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुताबिक सरकार ने कंपनी के तेल-गैस उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी के संशोधित आंकड़े के हिसाब से खुद ही बकाया रकम की गणना कर ली है। पन्ना-मुक्ता और ताप्ती तेल-गैस क्षेत्र से उत्पादन के मामले में कंपनी पर सरकार के 3.5 अरब डॉलर लंबित बकाये को इसका आधार बताया गया है।

दरअसल, अक्टूबर 2016 में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने एक आंशिक फैसला सुनाया था। वह फैसला भारत सरकार, बीजी एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन इंडिया लिमिटेड और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच पन्ना-मुक्ता एवं ताप्ती प्रोडक्शन शेयरिंग कांट्रैक्ट्स (पीएससी) विवाद पर आया था। उस फैसले में न्यायाधिकरण ने सिद्धांतों से जुड़े कुछ मसलों की पहचान की थी। लेकिन, उसमें किसी बकाया रकम के भुगतान का आदेश नहीं था। इस मामले में न्यायाधिकरण की तरफ से बकाया रकम (यदि निकलती हो) का निर्धारण उसी सूरत में किया जाएगा, जब तमाम संबंधित मसलों पर फैसला आ जाए।