Coronavirus in Chhattisgarh : क्वारंटाइन सेंटरों में कोरोना का फोबिया बन रहा जानलेवा, भगाने के ढेरों उपाय

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रायपुर। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। उनमें चिंता, विषाद, पलायनवादी प्रवृत्ति, आक्रामकता और आत्महत्या जैसे व्यवहारों की अधिकता दिखी है। मनोचिकित्सकों ने इसके लिए कोरोना फोबिया को जिम्मेदार ठहराया है। महामारी को रोकने के लिए क्वारंटाइन एक प्रभावशाली तरीका है, लेकिन यह तनाव का भी स्रोत है। इस दौरान व्यक्ति तमाम मनोवैज्ञानिक दबावों से गुजरता है, जैसे संक्रमण का डर, लंबे समय तक के लिए एकाकीपन, नैराश्य, बोरियत, अनुपयुक्त सूचनाएं, आर्थिक हानि, स्टिग्मा आदि। विशेषज्ञों की मानें तो नकारात्मक भाव आने के कारण व्यक्ति के शरीर में सेरोटेनिन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है।

इससे मस्तिष्क सेल तक संदेश ठीक तरह से नहीं पहुंच पाते, व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। प्रशासन को कोरोना फोबिया को रोकने के लिए, क्वारंटाइन सेंटर में सकारात्मकता लाने के लिए कई तरह के प्रयोग करने चाहिए। बता दें कि जशपुर में क्वारंटाइन सेंटर से एक श्रमिक घर भाग गया और घर में अपनी पत्नी से विवाद करके उसकी कलाई काट दी। इसी तरह रायगढ़ के सारंगढ़ में तेलंगाना से आए एक श्रमिक ने सेंटर में ही फांसी लगा ली। ऐसी ही घटना भिलाई में हुई जहां मां ने अपनी बेटी के फंसने की चिंता में आत्महत्या कर ली।

वर्चुअल कनेक्शन सबसे अधिक जरूरी

पंडित रविशंकर शुक्ल विवि की मनोविज्ञान विभाग की एचओडी डॉ. प्रियंवदा श्रीवास्तव के मुताबिक क्वारंटाइन के दौरान उत्पन्न उदासी को दूर करने के लिए उनको एक वर्चुअल कनेक्शन मिलना चाहिए। समाज के अन्य लोग ऐसे लोगों को घूरकर देखने के बजाय परोपकार का भाव दिखाए। क्वारंटाइन लोगों को यह न लगे कि वे समाज से दूर हैं। उन्हें ऐसी क्रियाओं में शामिल करें जिससे उनको अपनी सृजनात्मकता का उपयोग करने का अवसर मिले। एकाकीपन कम करने का दूसरा तरीका टैली साइकोथेरेपी है। यह मेंटल हेल्थ में इजाफा करने में उपयुक्त होगी। सकारात्मक सोच के लिए व्यक्ति के ही गांव के प्रमुख व उनके परिवार के लोग उनकी मदद कर सकते हैं।

क्वारंटाइन में रहने वाले लोगों का ऐसे भगाएं तनाव

खुशनुमा माहौल : क्वारंटाइन सेंटर में माहौल खुशनुमा रखें, स्वजनों से क्वारंटाइन व्यक्ति का संपर्क कराएं, दूर न करें।

मनोरंजन के साधन : यहां मनोरंजन के लिए इंडोर गेम की सुविधा दें सकते हैं, इसके साथ ही इंटरनेट गेम आदि की सुविधा दें।

मोटिवेट करें : क्वारंटाइन सेंटर में प्रशासन की ओर से सत्संग, मोटिवेशनल स्पीकर की स्पीच, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से काउंसिंलिंग करके इन लोगों को मोटिवेट करें। फोन कॉलिंग या वीडियो कॉलिंग से उनसे संपर्क लगातार बनाएं रखें ।

नकारात्मक भाव न आने दें : शरीर की जीवंतता हार्मोन पर ही निर्भर होती है। इसका असंतुलन शरीर में व्यवधान पैदा करता है। नकारात्मक भाव न आने दें।

भ्रांतियां दूर करें: कोरोना को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां हैं। कोरोना मरीज के ठीक होने और संदिग्धों की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी लोग उनसे दूरी बना रहे हैं। वे सोचते हैं कि छूने से बीमारी होगी, यह सही नहीं है।

योग की हो व्यवस्था : योगाचार्य डॉ. भगवत सिंह के मुताबिक क्वारंटाइन सेंटर के लोगों के लिए भ्रामरी प्राणायाम मन की व्याग्रता मिटाने का सटीक उपाय है। इसके अलावा नाड़ी शोधन (अनुलोम-विलोम) और गले को बेहतर रहने के लिए उज्जायी प्राणायाम सिर्फ 15 से 20 मिनट ही पर्याप्त है।

नकारात्मक भाव न लाएं

कोरोना इतनी बड़ी बीमारी नहीं है, जितना लोग इससे डर रहे हैं। क्वारंटाइन सेंटर में भी लोगों के डरने के कारण उनमें तनाव पनप रहा है, जिससे उनकी सोच के साथ व्यवहार में बदलाव आ रहा है। ऐसे लोगों को बचाने के लिए उनकी लगातार काउंसिलिंग करना जरूरी है। ऐसे लोगों को संदेश है कि वे नकारात्मक भाव में न जाएं। – डॉ. स्वाती शर्मा, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट

सकारात्मक सोच बढ़ाएं

क्वारंटाइन सेंटर के लोगों में इस प्रकार के व्यवहार को रोकने के लिए बेहतर व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें क्वारंटाइन प्रवासी लोगों को समुचित व सही सूचनाएं दी जानी जरूरी है। क्वारंटाइन के दौरान वह जो भी कार्य करते हैं, उन कार्यों के लिए उनको समुचित पुरस्कार दिए जाने चाहिए, जो उनकी मनोदशा को सुधारने में मदद कर सकें। – डॉ. प्रियंवदा श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट, पं. रविवि