‘मैं और दीपिका पादुकोण इस मामले में बिल्कुल एक जैसे हैं’: ‘गहराइयां’ निर्देशक शकुन बत्रा

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मुंबई। ‘एक मैं और एक तू’ और ‘कपूर एंड संस’ के बाद ‘गहराइयां’ निर्देशक शकुन बत्रा की तीसरी फिल्म है। रिश्तों को केंद्र में रखकर बुनी गई इस फिल्म को लेकर उनसे खास बातचीत…

अपने नौ साल के करियर में तीन फिल्में ही बनाई हैं…

मुझे समय का पता तब तक नहीं चलता है, जब तक कोई बाहर वाला याद नहीं दिलाता है कि तीन साल हो गए हैं फिल्म बनाए हुए। मैं अपने काम पर फोकस्ड रहता हूं। मेरे पास एक कंफर्टेबल लाइफ है। विज्ञापन फिल्में भी बनाता हूं, वहां से मेरा घर चल जाता है। बाकी चीजें ऐसी करना चाहता हूं, जिसमें मुझे मजा आए।

कोरोना काल की क्या सीख रही?

महामारी से बचाव के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए हमने फिल्म शूट की। धैर्य की इस बार परीक्षा हुई। एक फिल्म जिसे छह से सात महीने में खत्म हो जाना चाहिए था, उसे जब एक-डेढ़ साल लग जाए तो आप धैर्य रखना सीख लेते हैं। रुक-रुक कर र्शूंटग की वजह से फिल्म की एर्डिंटग भी साथ करते गए। स्क्रिप्ट में भी बदलाव किए गए। आयशा जिन्होंने मेरे साथ इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है, उन्होंने जब एडिट देखा तो उनके पास दो-तीन आइडिया थे। हमने दोबारा लिखा। तीन सीन फिर से लिखे गए, जिसे हमने रीशूट किया।

‘गहराइयां’ की शुरुआत कहां से हुई?

इसकी शुरुआत हुई थी अलीबाग से, जहां मैं 2019 में नया साल मनाने गया था। मेरे दिमाग में एक छोटी सी कहानी थी। मुझे लगा कि अलीबाग में यह कहानी बननी चाहिए। हम लोग अपनी फिल्मों में रिश्तों को एक ही नजरिए से देख रहे थे। ऐसा नहीं है कि पहले कांप्लेक्स फिल्में नहीं बना करती थीं। हमारे पास ‘सिलसिला’, ‘लम्हे’, ‘अर्थ’, ‘मासूम’ जैसी फिल्में हैं। ‘देवदास’ भी बहुत बड़ी फिल्म है, जो बहुत जटिल रिश्तों पर बनी है। आफबीट मेनस्ट्रीम में ऐसी फिल्में देखने को नहीं मिल रही थीं। मुझे लगा कि मेनस्ट्रीम एक्टर्स, सेंसिबिलिटी और मेनस्ट्रीम स्टूडियो के साथ ऐसी फिल्म को बनाना चाहिए। यह मसाला फिल्म नहीं है। फिर भी दीपिका पादुकोण हैं, गाने हैं, शूटिंग लोकेशंस और स्टाइल मेनस्ट्रीम के जैसा है।

आप दीपिका को कहानी सुनाने लंदन गए थे। दो दिन तक जवाब नहींमिलने पर बेचैन हो गए थे…

मैं और दीपिका एक जैसे हैं, जल्दी निर्णय नहीं लेते हैं। हम वक्त लेते हैं, सोचते हैं। मैं समझता हूं कि उनके दिमाग में क्या चल रहा था।

आपने साथ में वर्कशाप्स की थीं…

मैं एक नया माहौल बनाना चाहता था। मैं अंतरंग दृश्यों की शूटिंग के लिए इंटीमेसी डायरेक्टर लाना चाहता था, इंटीमेसी कोआर्डिनेटर लाना चाहता था। एक चर्चा करना चाहता था, ठीक वैसे ही जैसे हम एक्शन करते हैं, कोरियोग्राफी करते हैं। आप कलाकार का दायरा व उनका प्वाइंट आफ व्यू समझते हैं। उसके बाद चीजें लिखवाई जाती हैं। इंटीमेसी वर्कशाप थिएटर वर्कशाप की तरह होती हैं, जिसमें ट्रस्ट बिल्डिंग होती है, ताकि एक-दूसरे पर भरोसा बना सकें। अब मैच्योर कहानियां आ रही हैं। जिस तरह से पूरी दुनिया में इज्जत के साथ ऐसी फिल्में बनाई जाती हैं, वैसे ही हमने बहुत इज्जत और केयरफुल लेंस के साथ फिल्म बनाई है।