नई दिल्ली : महाराष्ट्र में करीब एक माह से चल रहा सियासी ड्रामा आखिरकार समाप्त हो गया। भाजपा और एनसीपी के अजीत पवार ने मिलकर महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन किया। लेकिन महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामें में कई मिथक टूटे, कई दोस्त बिछड़े तो कई नई दोस्ती की आधारशिला भी रखी गई। सरकार बनाने के लिए नए गठजोड़ हुए। आइए जानते हैं कब और कैसे लिखी गई पुरानी दोस्ती की पटकथा। कैसे महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का वर्चस्व बढ़ा।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के नतीजे 24 अक्टूबर को आए थे। नतीजों से साफ था कि महाराष्ट्र की जनता ने किसी एक राजनीति दल या गठबंधन को सरकार बनाने का बहुमत नहीं दिया। ऐसे में सरकार बनाने की कसरत शुरू हो गई। इसमें कई मिथक धारासायी हो गए। भाजपा और शिवसेना का काफी पुराना और परंपरागत गठबंनध खत्म हो गया। इससे शिवसेना का भाजपा से दूरी बन गई। अंत में भाजपा और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई। इससे कांग्रेस और एनसीपी का गठजोड़ भी दरार आना तय है।
भाजपा और शिवसेना की दोस्ती का इतिहास काफी पुराना है। दोनों ने मिलकर महाराष्ट्र में कांग्रेस के वर्चस्व को खत्म कर दिया। 1989 में पहली बाद लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों एक साथ अाए। इस गठबंधन ने महाराष्ट्र के इतिहास में नया इतिहास रचाा। इस गठबंधन ने महाराष्ट्र की तनता को नया विकल्प दिया। इसके बाद यह गठबंधन निरंतर मजबूत होता गया।
1989 के बाद हुए यहां हर विधानसभा चुनाव में दोनों दल एक साथ चुनाव लड़े। 1990 के विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन भाजपा और शिवसेना ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। शिवसेना को 52 सीटें और भाजपा को 42 सीटें हासिल हुई। इसके बाद से वह निरंतर अपने मत प्रतिशत में वृद्धि कर रही है। लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन में दरार आ गई।
महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेजा शरद पवार पार्टी से अनबन के कारण अलग हुए। पवार ने अपनी एक नई पार्टी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी का गठन किया, लेकिन सरकार के गठन में उन्होंने कांग्रेस से दूरी नहीं बनाई। इसके बाद से इस प्रदेश में कांग्रेस यहां और कमजोर हुई। इसके बाद से कांग्रेस यहा स्वतंत्र रूप से सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रही। हालांकि महाराष्ट्र में सरकार गठन में वह कई बार कांग्रेस के साथ रही है। लेकिन 2019 में हुए महाराष्ट्र में सरकार गठन में मतभेद उभर कर सामने आए हैं।